कोलकाता के दुर्गा पूजा पंडाल में मॉडल्स के 'विद्रोही' पहनावे पर बवाल, इंटरनेट पर नाराजगी
कोलकाता की तीन मॉडल्स को दुर्गा पूजा पंडाल में 'बोल्ड' आउटफिट्स पहनने के लिए सोशल मीडिया पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब हेमोश्री भद्र और सन्नति मित्रा, जो दोनों मिस कोलकाता रह चुकी हैं, अपनी एक और दोस्त के साथ पंडाल में खींची गई तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कीं। तस्वीरों में एक मॉडल ने काले रंग की टाइट फिटिंग गाउन पहनी थी, जबकि दूसरी ने नारंगी रंग की शॉर्ट ड्रेस और ऊँचे बूट्स पहने थे। तीसरी व्यक्ति ने लाल ब्लाउज और काले पैंट का चुनाव किया था।
सन्नति ने इंस्टाग्राम पर इन तस्वीरों को साझा करते हुए उनके लुक को 'विद्रोही' बताया, लेकिन सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने इसे अनुचित और अस्वीकार्य माना। कई लोगों ने टिप्पणी की कि इस तरह के कपड़े धार्मिक उत्सव के माहौल के लिए उपयुक्त नहीं थे, जिससे ऑनलाइन बवाल खड़ा हो गया।
'विद्रोही' लुक पर सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
इंस्टाग्राम पोस्ट में सन्नति ने लिखा, "यह बहुत विद्रोही था, हमने कभी नहीं सोचा था कि यह संभव होगा। एक लड़की होने के नाते, हम हमेशा जानते थे कि हमारा शरीर 'बुरा' है, लेकिन जीवन ऐसा ही है, यह नए उदाहरण और अनुभव देता है।" हालांकि, उनके इस बयान को लेकर भी लोगों ने कड़ी प्रतिक्रियाएं दीं। कई सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने कहा कि धार्मिक आयोजनों में पारंपरिक और सभ्य कपड़ों का महत्व होता है, और इस प्रकार की ‘विद्रोही’ फैशन पसंद को दुर्गा पूजा जैसे पवित्र पर्व में सही नहीं माना जा सकता।
एक यूजर ने टिप्पणी की, “दुर्गा पूजा एक धार्मिक उत्सव है, न कि फैशन शो। इस प्रकार के कपड़े पहनने से हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का अपमान होता है।” वहीं, एक अन्य यूजर ने कहा, “आधुनिकता और स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि हम अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भूल जाएं। हमें इन आयोजनों का सम्मान करना चाहिए।”
मॉडल्स का पक्ष और सोशल मीडिया की बहस
दूसरी ओर, कुछ लोगों ने मॉडल्स का पक्ष भी लिया और उनके पहनावे को उनके व्यक्तिगत अधिकार और स्वतंत्रता के तहत देखा। कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने कहा कि कपड़े पहनने का चुनाव व्यक्तिगत होता है और किसी को भी इस पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। एक यूजर ने लिखा, “हर किसी को अपने अनुसार कपड़े पहनने का अधिकार है, चाहे वह धार्मिक आयोजन हो या कोई अन्य अवसर। किसी के पहनावे से उसकी धार्मिक आस्था या आदर पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।”
हालांकि, इस विवाद ने इंटरनेट पर एक बड़ी बहस छेड़ दी है, जिसमें लोग दोनों पक्षों पर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं। एक ओर जहां लोग पारंपरिक और धार्मिक मूल्यों को संरक्षित करने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की भी जोरदार वकालत की जा रही है।
विद्रोही फैशन या व्यक्तिगत अभिव्यक्ति?
यह विवाद उस समय उठ खड़ा हुआ है जब समाज में आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाने की चर्चा हो रही है। खासकर त्योहारों और धार्मिक आयोजनों के समय, कई बार यह सवाल उठता है कि कौन सा लिबास उपयुक्त है और कौन सा नहीं। वहीं, कुछ लोग इसे व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के अधिकार से जोड़कर देखते हैं, जहां हर व्यक्ति को अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आजादी होती है।
दुर्गा पूजा और पहनावे पर सामाजिक दृष्टिकोण
दुर्गा पूजा, जो भारत में विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, एक धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार है। इस पर्व में न केवल देवी दुर्गा की पूजा होती है, बल्कि यह बंगाल की संस्कृति, परंपरा और समाज का प्रतीक भी है। ऐसे में इस पर्व के दौरान पहनावे को लेकर विवाद होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार सोशल मीडिया पर जिस तरह से बहस छिड़ी है, उसने इसे एक व्यापक मुद्दा बना दिया है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और परंपराओं के बीच संतुलन
समाज में फैशन और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को लेकर बहस हमेशा से रही है, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के दौरान यह और भी गहरा हो जाता है। इस मामले में भी, सवाल यह उठता है कि क्या व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पालन करते हुए हमें अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का सम्मान करना चाहिए या नहीं।
समाज में ऐसे मुद्दों पर चर्चा जरूरी है, ताकि हम परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बना सकें और एक दूसरे की भावनाओं का आदर कर सकें।
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